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Wednesday, 25 July 2018

प्रदेश में ट्रस्ट के दुरुपयोग का सबसे बड़ा मामला.. स्टूडेंट्स से कैश में मिले Rs.20 करोड़, बताया 40 हजार लोगों ने दिया है दान

ग्रामीण मीडिया संवाददाता

 गुरुदत्त तिवारी | भोपाल 
स्टूडेंट्स से कैश में मिले Rs.20 करोड़, बताया 40 हजार लोगों ने दिया है दान 
ऐेसे पकड़ में आई गड़बड़ीसरनेम जोशी, लेकिन पूरे गांव में एक भी ब्राह्मण नहीं 

दो साल पहले सुरेश के. भदौरिया ने अपने ट्रस्ट के रिटर्न में 20 करोड़ रुपए का दान मिलना बताया था। विभाग को गफलत में डालने के लिए उसने 40 हजार दानदाताओं की लिस्ट भी सौंपी थी। दानदाताओं के गांव और शहर अलग-अलग थे। कई नाम तो ऐसे थे जो एक शहर या गांव में एक ही थे। विभाग ने इन दानदाताओं की और डिटेल देने को कहा- जैसे, दानदाताओं ने पैसा कैसे दिया बैंक से या चेक से? उनसे दान लेते वक्त उनका कोई पहचान पत्र लिया गया या नहीं? इन सवालों के जवाब में भदौरिया ने कुछ ही लोगों की जानकारी दी थी। जब विभाग का दवाब बढ़ा तो सारे दानदाताओं से दान नकद में मिलना बताया। प्रारंभिक जांच में सूची में दर्ज नाम शंका के घेरे में थे। इसके बाद विभाग ने रजिस्टर्ड डाक से 3,000 लोगों को समन भेजे।, लेकिन करीब 2900 पत्र वापस आ गए, क्योंकि उन पतों पर वह व्यक्ति मिला ही नहीं। सभी में एक ही रिमार्क था, पता गलत है। जिन 100 लोगों के पते सही थे, वे आयकर विभाग के दफ्तर पहुंचे और सबने एक ही बात कही कि उन्होंने एक रुपया भी भदौरिया के ट्रस्ट को दान नहीं दिया है। कुछ ने तो यह कहा कि वे केवल वहां इलाज कराने गए थे। इसके बाद विभाग ने सूची में शामिल 100 अलग-अलग गांव के लोगों की सूची बनाई और जांच के लिए अधिकारी वहां पहुंचे तो खुलासे और दिलचस्प थे। जिस दानदाता को देवास जिले के बागली का रहने वाला बताया गया, उस नाम या सरनेम का व्यक्ति ही पूरे गांव में कोई नहीं था। कुछ मामलों में गांव के सरपंच ने बताया कि जिस जोशी की आप तलाश कर रहे हैं, वह तो छोड़िए इस पूरे गांव में कोई ब्राह्मण ही नहीं रहता है। यह तो कास्तकारों का गांव है। सूची में कुछ ऐसे आदिवासी गांव भी हैं, जहां के किसी ठाकुर दानदाता से दान मिलने के प्रमाण भदौरिया ने विभाग को दिए थे। इस जांच से विभाग पूरी तरह से आश्वस्त हो गया कि यह पूरी सूची ही फर्जी है। इसके बाद यह भी पाया गया कि भदौरिया ने पिछले 10 साल में हर साल इसी तरह के दान मिलना बताए थे। 

सुरेश के. भदौरिया संचालक, इंडेक्स मेडिकल कॉलेज 
कैश में मिली फीस को सफेद करना था मकसद 
आयकर विभाग के जानकार कहते हैं कि आमतौर पर ज्यादातर ट्रस्ट अपने रिटर्न में घाटा होना शो करते हैं, लेकिन सुरेश भदौरिया को इंडेक्स के बाद देवास में दूसरा मेडिकल कॉलेज अमलतास का काम शुरू करना था। इसके लिए उन्हें अनाप-शनाप कैपिटेशन फीस के नाम पर कैश में मिले धन को सफेद करना था। इसलिए उन्होंने यह गड़बड़ी करना शुरू की। नतीजतन वे आयकर विभाग की नजरों में चढ़ गए। 

व्यापमं घोटाले में फरार चल रहे इंडेक्स कॉलेज के संचालक सुरेश के. भदौरिया ने ट्रस्ट बनाकर 20 करोड़ रुपए की काली कमाई को सफेद किया है। यह खुलासा हुआ है आयकर विभाग की दो साल चली जांच में। भदौरिया ने मेडिकल स्टूडेंट्स से कैश में मिली फीस को 40 हजार से ज्यादा लोगों द्वारा दान में मिलना बताया है, जबकि हकीकत यह है कि भदौरिया ने जिन 40 हजार लोगों को दानादाता बताया है, उनमें से ज्यादातर का या तो अस्तित्व ही नहीं है या फिर कुछ लोग वे हैं जो कभी उनके अस्पताल में इलाज कराने पहुंचे थे। 

दानदाताओं की सूची में ज्यादातर दानदाता इंदौर, देवास, आष्टा, सीहोर और भोपाल जिले के ग्रामीण क्षेत्रों से थे। इसे और जटिल बनाने के लिए कई गांव से एक ही दानदाता का नाम बताया गया। विभाग ने शंका के आधार पर 2016 में जांच शुरू की थी, जो ग्रुप पर छापे पड़ने के पहले तक चलती रही। इस दौरान भदौरिया ने देवास में भी एक मेडिकल कॉलेज शुरू कर दिया। इसमें निवेश के लिए उसने हर साल 20 करोड़ रुपए का डोनेशन इन दानदाताओं से मिलना बताया था। विभाग को आंशका है कि 10 साल की अवधि में भदौरिया ने करीब 100 करोड़ रुपए की छूट इन ट्रस्ट के जरिए ली। इसी जांच के निष्कर्ष के बाद ही आयकर विभाग ने मार्च में भदौरिया के ठिकानों पर छापे मारे थे। यह जांच आयकर विभाग की सबसे बड़ी कार्रवाई मानी जा रही है। 
 आयकर विभाग की सबसे बड़ी कार्रवाई मानी जा रही है।  विभाग को आशंका... 10 साल की अवधि में भदौरिया ने करीब Rs.100 करोड़ की छूट ट्रस्ट के जरिये ली है 

2 युवकों ने ऋण दिलाने के नाम पर किसान से Rs. 19 हजार ठगे

ग्रामीण मीडिया संवाददाता

ग्राम हरदौली काठी के आदिवासी किसान को निजी संस्था से ऋण दिलाने के नाम पर दो युवकों ने 19 हजार रुपए ठग लिए। दोनों युवकों ने किसान से खेती के दस्तावेज भी जमा करा लिए। ऋण नहीं मिलने पर अब दोनों युवक राशि और दस्तावेज नहीं लौटा रहे। 
बुधवार को किसान ने इस संबंध में थाने में आवेदन देकर कार्रवाई की मांग की। किसान बस्तीराम उइके ने बताया 6 महीने पहले ग्राम लीलाझर के राजेश और नेहरू ने उसे दो लाख रुपए का ऋण दिलाने की बात कही। इसके लिए 19 हजार रुपए और खेत के दस्तावेज और आधार कार्ड मांगे। ऋण के लिए 19 हजार रुपए और सभी दस्तावेज राजेश और नेहरू को दे दिए। 
इसके बाद दोनों ने कोरे स्टांप पर हस्ताक्षर कराए और कहा जल्द ही ऋण स्वीकृत हो जाएगा। दो महीने में भी ऋण की राशि नहीं मिली तो उसने राजेश और नेहरू से संपर्क किया। राजेश और नेहरू से रुपए और दस्तावेज वापस मांगे तो गुमराह करने लगे। अब दोनों राशि और दस्तावेज लौटाने से मना करते हुए गाली-गलौज करते हैं। बस्तीराम ने आवेदन की जांच कर कार्रवाई की मांग की।

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प्राइवेट स्कूलों के लिए ये भी है नए अधिनियम में

ग्रामीण मीडिया संवाददाता

भोपाल। फीस-स्कूल ड्रेस व कॉपी-किताब के मामले में प्राइवेट स्कूल अब मनमानी नहीं कर सकेंगे। वे पांच साल तक न तो ड्रेस बदल सकेंगे न फीस के रूप में वसूल की जाने वाली राशि नकद ले सकेंगे। फीस जमा करने के लिए उन्हें पालकों को बैंक एकाउंट बताना होगा। नया शिक्षण सत्र प्रारंभ होने के 150 दिन पहले नए सत्र की फीस पोर्टल पर डालनी होगी। इसके साथ ही पिछले तीन साल के लाभ हानि की डिटेल भी शिक्षा अधिकारी को बतानी होगी। आपत्तियां उप सचिव स्कूल शिक्षा केके द्विवेदी को वल्लभ भवन या फिर ईमेल ds.school@mp.gov.in पर भेजी जाएंगी। इस पूरी कवायद को लेकर 26 जून को मप्र निजी विद्यालय फीस अधिनियम का नोटिफिकेशन हो चुका है। अधिनियम को अंतिम रूप देने से पहले एक महीने अर्थात 25 जुलाई तक दावे-आपत्ति भी मांगे गए हैं। इसके बाद नियमों को अंतिम कर दिया जाएगा।

पूरे प्रदेश में एक समस्या

- निजी स्कूलों की मनमानी को लेकर पूरे प्रदेश के अभिभावक परेशान रहते हैं। 
- स्कूल संचालक हर साल ड्रेस में कुछ ना कुछ बदलाव कर देते हैं। 
- कभी फीस के नाम पर अभिभावकों को स्कूल संचालक परेशान करते हैं।
- स्कूल ड्रेस या कॉपी-किताब एक ही दुकान से खरीदने का दबाव रहता है।

हर सत्र में एक सी समस्या

- इस तरह की शिकायतें हर शिक्षण सत्र में आती हैं। 
- प्राइवेट स्कूलों की मनमानी पर लगाम लगाने के लिए ही अधिनियम बना है और अब नियम भी बन जाएंगे।
- इसके लिए पिछले छह साल से विभाग प्रयास कर रहा था।
- नए अधिनियम के तहत बने नियम शैक्षणिक सत्र 2018-19 से लागू होंगे।

प्राइवेट स्कूलों के लिए ये भी है नए अधिनियम में

पोर्टल पर फीस की संरचना प्रस्तुत नहीं करने पर लेट फीस के साथ 135 दिन में जानकारी देनी होगी। 
- जो स्कूल लाभ 10 फीसदी से कम बताकर फीस बढ़ाएंगे, जांच के लिए उनके दस्तावेज जब्त हो सकेंगे। 
- 10 फीसदी की वृद्धि तभी मंजूर होगी जब कोई शिकायत नहीं होगी, अंतिम निर्णय डीईओ लेंगे। 
- 10 से 15 फीसदी वृद्धि प्रस्तावित होने पर फीस वृद्धि पर निर्णय 45 दिन मे जिलास्तरीय समिति लेगी। 
- प्राइवेट स्कूल फीस की डिटेल वेबसाइट पर नहीं डालते पर उन्हें हिंदी-अंग्रेजी में यह बताना होगा। 
- कोई भी स्कूल छूट के नाम पर एक तिमाही से ज्यादा फीस एक साथ नहीं ले सकेगा। 
- स्कूल का नाम केवल ड्रेस पर होगा, एक दुकान से ड्रेस, स्टेशनरी खरीदने को विवश नहीं करेंगे। 
- किताबों की बिक्री के लिए स्कूल परिसर में सरकारी प्रकाशकों की छोटी दुकानें खुल सकेंगी। 
- जिला स्तर की समिति किसी भी स्कूल में जांच के लिए प्रवेश कर सकेगी। 
- मनमानी करने पर पहली बार दो लाख, दूसरी बार चार लाख तथा तीसरी बार छह लाख जुर्माना।
- जुर्माना न देने पर इसकी वसूली राजस्व अधिकारियों की मदद से कुर्की और नीलामी के माध्यम से। 
- ऑडिट होने या फिर शिकायत की जांच पूरी होने (अधिकतम 7 साल) तक रिकॉर्ड रखना होगा। 
- स्कूल की शिकायत पालक-छात्र ही कर सकेंगे, अखबार में छपी खबर भी अफसर संज्ञान में लेंगे।
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मुलताई के निजी स्कूल और सरकार मप्र निजी विद्यालय फीस अधिनियम 2018 को लेकर आमने सामने

ग्रामीण मीडिया संवाददाता 

जाने क्या है, मप्र निजी फीस अधिनियम  2018 मुलताई में प्राइवेट स्कूलों के संचालको का मत है की शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित होगी सरकार ने इस लिए लाया ये अधिनियम 
भोपाल। फीस-स्कूल ड्रेस व कॉपी-किताब के मामले में प्राइवेट स्कूल अब मनमानी नहीं कर सकेंगे। वे पांच साल तक न तो ड्रेस बदल सकेंगे न फीस के रूप में वसूल की जाने वाली राशि नकद ले सकेंगे। फीस जमा करने के लिए उन्हें पालकों को बैंक एकाउंट बताना होगा। नया शिक्षण सत्र प्रारंभ होने के 150 दिन पहले नए सत्र की फीस पोर्टल पर डालनी होगी। इसके साथ ही पिछले तीन साल के लाभ हानि की डिटेल भी शिक्षा अधिकारी को बतानी होगी। आपत्तियां उप सचिव स्कूल शिक्षा केके द्विवेदी को वल्लभ भवन या फिर ईमेल ds.school@mp.gov.in पर भेजी जाएंगी। इस पूरी कवायद को लेकर 26 जून को मप्र निजी विद्यालय फीस अधिनियम का नोटिफिकेशन हो चुका है। अधिनियम को अंतिम रूप देने से पहले एक महीने अर्थात 25 जुलाई तक दावे-आपत्ति भी मांगे गए हैं। इसके बाद नियमों को अंतिम कर दिया जाएगा।

पूरे प्रदेश में एक समस्या

- निजी स्कूलों की मनमानी को लेकर पूरे प्रदेश के अभिभावक परेशान रहते हैं। 
- स्कूल संचालक हर साल ड्रेस में कुछ ना कुछ बदलाव कर देते हैं। 
- कभी फीस के नाम पर अभिभावकों को स्कूल संचालक परेशान करते हैं।
- स्कूल ड्रेस या कॉपी-किताब एक ही दुकान से खरीदने का दबाव रहता है।

हर सत्र में एक सी समस्या

- इस तरह की शिकायतें हर शिक्षण सत्र में आती हैं। 
- प्राइवेट स्कूलों की मनमानी पर लगाम लगाने के लिए ही अधिनियम बना है और अब नियम भी बन जाएंगे।
- इसके लिए पिछले छह साल से विभाग प्रयास कर रहा था।
- नए अधिनियम के तहत बने नियम शैक्षणिक सत्र 2018-19 से लागू होंगे।

प्राइवेट स्कूलों के लिए ये भी है नए अधिनियम में

- पोर्टल पर फीस की संरचना प्रस्तुत नहीं करने पर लेट फीस के साथ 135 दिन में जानकारी देनी होगी। 
- जो स्कूल लाभ 10 फीसदी से कम बताकर फीस बढ़ाएंगे, जांच के लिए उनके दस्तावेज जब्त हो सकेंगे। 
- 10 फीसदी की वृद्धि तभी मंजूर होगी जब कोई शिकायत नहीं होगी, अंतिम निर्णय डीईओ लेंगे। 
- 10 से 15 फीसदी वृद्धि प्रस्तावित होने पर फीस वृद्धि पर निर्णय 45 दिन मे जिलास्तरीय समिति लेगी। 
- प्राइवेट स्कूल फीस की डिटेल वेबसाइट पर नहीं डालते पर उन्हें हिंदी-अंग्रेजी में यह बताना होगा। 
- कोई भी स्कूल छूट के नाम पर एक तिमाही से ज्यादा फीस एक साथ नहीं ले सकेगा। 
- स्कूल का नाम केवल ड्रेस पर होगा, एक दुकान से ड्रेस, स्टेशनरी खरीदने को विवश नहीं करेंगे। 
- किताबों की बिक्री के लिए स्कूल परिसर में सरकारी प्रकाशकों की छोटी दुकानें खुल सकेंगी। 
- जिला स्तर की समिति किसी भी स्कूल में जांच के लिए प्रवेश कर सकेगी। 
- मनमानी करने पर पहली बार दो लाख, दूसरी बार चार लाख तथा तीसरी बार छह लाख जुर्माना।
- जुर्माना न देने पर इसकी वसूली राजस्व अधिकारियों की मदद से कुर्की और नीलामी के माध्यम से। 
- ऑडिट होने या फिर शिकायत की जांच पूरी होने (अधिकतम 7 साल) तक रिकॉर्ड रखना होगा। 
- स्कूल की शिकायत पालक-छात्र ही कर सकेंगे, अखबार में छपी खबर भी अफसर संज्ञान में लेंगे।
उपरोक्त अधिनियम के खिलाफ मुलताई के 38 स्कूलों के संचालको ने विरोध ज्ञापन दिया। 
निजी स्कूल संचालक बोले: फीस अधिनियम शिक्षा की गुणवत्ता के लिए खतरनाक 

नगर के निजी स्कूल संचालकों ने विद्यालय की फीस के संबंध में बनाए अधिनियम पर आपत्ति जताते हुए बुधवार को एसडीएम को ज्ञापन दिया। संचालक नवीन ओमकार, अनीश नायर, राजू भादे, देवेंद्र शर्मा, कुलदीप राठौर आदि ने बताया निजी विद्यालयों की फीस नियंत्रण के संबंध में बनाए गए फीस अधिनियम 2017-18 के प्रावधान शिक्षा की गुणवत्ता और बेहतरी के लिए खतरनाक है। इसमें संशोधन किया जाना चाहिए। स्कूल संचालकों के साथ विचार-विमर्श कर नए नियम बनाया जाना चाहिए। आरटीई के तहत पढ़ने वाले विद्यार्थियों की फीस का समय पर भुगतान नहीं होने से स्कूलों की माली हालत खराब हो रही है। संबद्धता शुल्क के कारण पोर्टल बंद कर दिए हैं उसे दोबारा शुरू कर छह महीने का समय दिया जाना चाहिए। प्रतिस्पर्धा के दौर में स्कूलों को अपनी गुणवत्ता और सुविधा के आधार पर फीस तय करने का अधिकार दिया जाना चाहिए। निजी स्कूल संचालकों ने समस्याओं पर गंभीरता से विचार कर राहत देने की मांग की। निजी स्कूल संचालक एसडीएम को ज्ञापन सौंपते हुए।
आम पालक अपने विचार रखे सरकार या निजी स्कूल में से कौन सही या गलत 


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